दुर्गापूजा
दुर्गा पूजा पूजन सामग्री
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शुद्ध मिट्टी (महादेव का स्वरुप बनावें)
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कुश (तेकुशा),अनामिका(कुश,ताँबा) अँगुली में धारण करने वाला
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गंगाजल
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अक्षत (वासमती चावल)
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श्रीखण्ड चंदन (उजला चंदन)
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रक्त चंदन (लाल चंदन)
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चन्द्रौटा (छोटा प्लेट)
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अर्घा (छोटा ग्लास)
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पञ्चपात
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आचमनि
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घण्टी
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सराई
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लाल सिन्दूर
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फूलक माला
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तुलसी माला
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बेलपत्र
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दुर्वा(दुइव)
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धूप
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दीप
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पान
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सुपाड़ी(कसैली)
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पंचमेवा (मिठाई)
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पाकल केरा
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पंचामृत(दुध,दही,घी,मधु, शक्कर)
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जनेऊ
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कर्पूर
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घी
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दक्षिणा-द्रव्य
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केला पत्ता
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शंख
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नया वस्त्र
निवेदनम्
(दुर्गापूजा विशेष)
‘‘कलौ चण्डीविनायकौ’ कलियुग में दुर्गा एवं गणेशजी को प्रत्यक्ष एवं प्रधान देवता कहा जाता है।
समस्त देवी-देवताओं का पर्वोत्सव प्रतिवर्ष केवल एक बार मनाया जाता है, परन्तु दुर्गा माता का पर्वोत्सव जिसे नवरात्रि नाम से कहा जाता है वह प्रतिवर्ष चार बार मानाया जाता है। चैत्र, आश्विन, आषाढ़ और माघ ये चार दुर्गाजी की आराधना हेतु नवरात्रि नाम से विख्यात पर्वोत्सव है जैसा कि देवी पुराण में उल्लेख है-
चैत्रेऽऽश्विने तथाऽऽषाढ़े माघे कार्यो महोत्सवः।
नवरात्र महाराज पूजा कार्या विशेषतः ।।
(देवीपुराण 3/24/21)
आश्विने मधुमासे वा तपोमासे शुचै तथा ।
तचुर्षु नवरात्रेषु विशेषात्फलदायकम् ।।
(देवीभागवत महात्म्य 1/31)
उपरोक्त प्रमाण के आधार पर चारों नवरात्रोत्सव ऋतु आधारित है। त्रिगुणात्मिका भगवती दुर्गा ही महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में अवतरित होकर देवताओं के कार्यों को सिद्ध करती है, दुष्ट राक्षसों का विनाश करती हैं और भक्तों का कल्याण करती है। समस्त बाधाओं को दूर कर भक्तों का कल्याण करने वाली भगवती ने स्वयं कहा-
इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति ।
तदा तदावतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम् ।।
(दुर्गासप्तशती 11/54)
दुर्गा की पूजा शारदीय नवरात्र में सर्वत्र धूम-धाम से मनाया जाता है। जो मनुष्य प्रतिवर्ष शरत्काल (शारदीय नवरात्र) में दुर्गा की पूजा करते हैं, वे समस्त विघ्न-वाधाओं से मुक्त होकर धन-धान्य पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति करते हैं-
शरत्काले महापूजा क्रियते या च वार्षिकी ।
तस्यां ममैतन्महात्म्यं श्रुत्वा भक्तिसमन्वितः ।।
सर्बाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वितः ।।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न शंशयः ।।
(दुगासप्तशती 12/12, 13)
माँ दुर्गा की कृपा-प्रसाद से मनुष्य समस्त रोग-शोक और क्लेशों से मुक्त होकर पुत्र-पौत्रादि, धन-धान्य से परिपूर्ण सभी प्रकार के सुखोपभोग कर मोक्ष प्राप्त करता है।
उपासना-
दुगा की उपासना तीन प्रकार से व्यवहार में प्रचलित है। 1 पाठात्मक 2 जपात्मक 3 हवनात्मक इन सभी प्रकार की उपासनाओं में सर्वप्रथम दुर्गा का पूजन अनिवार्य है। पूजनोपरान्त ही किसी भी प्रकार की काम्य संकल्प की पूर्ति हेतु विविध प्रकार की उपासना की जाती है।
वर्तमान समय में पूजा की प्रक्रिया को सुगम एवं बोधगम्य बनाने हेतु इस बेवसाईट के माध्यम से आप सभी भक्तों को लाभान्वित किया जा रहा है।
इस सुगम पूजा विधि से आप स्वतः ही दुर्गा की पूजा एवं अर्चना अपने पास उपलब्ध सामग्रियों से कर सकते हैं।
पूजन क्रम-
प्रातः काल पूर्व मुख बैठकर त्रिकुश (तेकुशा) को हाथ में जल सहित लेकर निम्नांकित मन्त्र को पढ़कर जल से सर्वप्रथम अपने ऊपर छिड़कें तथा सम्मुख पूजन सामग्रियों पर भी जल छिड़कें
मन्त्र-
ऊँ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।। ऊँ पुण्डरीकाक्षः पुनातु।।
सर्वप्रथम पंचदेवता और विष्णु की पूजा होती है। नियमानुसार प्रातः काल सूर्यादिपंचदेवता एवं रात्रिकालीन - गणपत्यादि पंचदेवता पूजन करें।
(नोट- अपने सम्मुख रखे केलापात या किसी धातु पात्र में पूजन करें)
सूर्यादि पंचदेवता-- आदित्यं गणनाथं च गौरी रूद्रं च केशवम् पंचदैवत्य मित्याहुः सर्वकर्मषु पूजयेत्।
अर्थात् आदित्य (सूर्य), गणनाथ (गणेश), गौरी, रूद्र, विष्णु इन्हीं पंचदेवताओं की पूजा सर्वप्रथम एक साथ की जाती है। जिसमें परिवर्तन केवल आदि के नाम में है यथा- सूर्यादि पंचदेवता या गणपत्यादि पंचदेवता
पञ्चदेवतापूजाः- दिन में सूर्यादिपञ्चदेवता की पूजा का विधान है।
त्रिकुशहस्तः अक्षतान्यादायः- ऊँ भूर्भुवः स्वः सूर्यादिपञ्चदेवताः इहागच्छत इह तिष्ठत
दाहिने हाथ में तेकुशा तथा अक्षत लेकर ये मंत्र पढेगें - ऊँ भूर्भुवः स्वः सूर्यादिपञ्चदेवताः इहागच्छत इह तिष्ठत इसे केले के पत्ते पर उपर से बाएं तरफ से रखेंगे
इत्यावाह्य एतानि पाद्यार्घाचमनीय-स्नानीय पुनराचमनीयानि ऊँ सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः ।
अर्घा में जल लेकर ये मंत्र पढेगें - एतानि पाद्यार्घाचमनीय-स्नानीय पुनराचमनीयानि ऊँ सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः ।
चन्दन - इदमनुलेपनम् ऊँ सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः ।
दाहिने हाथ से फूल में चन्दन लगाकर ये मंत्र पढेंगे - इदमनुलेपनम् ऊँ सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः
अक्षत - इदमक्षतम् ऊँ सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः
दाहिने हाथ में अक्षत लेकर ये मंत्र पढेंगे- इदमक्षतम् ऊँ सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः
फूल – इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः
दोनों हाथों को जोड़ते हुए फूल/फूलों को लेकर भगवान् का ध्यान करते हुए ये मंत्र पढेंगें- इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः
बिल्वपत्र – इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः
एक बेलपत्र/बेलपत्रों को लेकर ये मंत्र पढेंगे- इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः
तुलसीपत्र - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः
एक तुलसीपत्र/तुलसीपत्रों को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः
दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं / एतानि दूर्वादलानि ऊँ सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः
एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं दूर्वादलं / एतानि दूर्वादलानि ऊँ सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः
एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः ।
अर्घा में जल लेकर ये मंत्र पढेंगे - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः ।
जल – इदमाचमनीयम् ऊँ सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः ।
अर्घा में जल को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदमाचमनीयम् ऊँ सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः ।
पुष्प - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः ।
फूल हाथ में लेकर भगवान् का ध्यान करते हुए ये मंत्र पढेंगे - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ सूर्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः ।
विष्णुपूजा –
यव-तिलान्यादाय - ऊँ भूर्भुवः स्वः भगवन् श्रीविष्णो इहागच्छ इह तिष्ठ।
दाहिने हाथ में तिल लेकर ये मंत्र पढेंगे - ऊँ भूर्भुवः स्वः भगवन् श्रीविष्णो इहागच्छ इह तिष्ठ। इसे केले के पत्ते पर ऊपर से बाएं तरफ से दूसरे स्थान पर रखेंगे।
जल - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः
अर्घा में जल लेकर ये मंत्र पढेंगे - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः
चन्दन -इदमनुलेपनम् ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः
दाहिने हाथ से फूल में चन्दन लगाकर ये मंत्र पढेंगे - इदमनुलेपनम् ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः
तिल - एते तिलाः ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः
दाहिने हाथ में तिल लेकर ये मंत्र पढेंगे - एते तिलाः ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः
पुष्प - इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।
दोनों हाथों को जोड़ते हुए फूल/फूलों को लेकर भगवान् का ध्यान करते हुए ये मंत्र पढेंगे - इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।
तुलसीपत्र - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।
एक तुलसीपत्र/तुलसीपत्रों को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।
दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं / एतानि दूर्वादलानि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।
एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं दूर्वादलं / एतानि दूर्वादलानि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।
दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं / एतानि दूर्वादलानि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।
एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं दूर्वादलं / एतानि दूर्वादलानि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।
जल - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।
अर्घा में जल लेकर ये मंत्र पढेंगे - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।
जल – इदमाचमनीयम् ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।
अर्घा में जल को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदमाचमनीयम् ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।
पुष्प - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।
फूल हाथ में लेकर भगवान् का ध्यान करते हुए ये मंत्र पढेंगे - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ भगवते श्रीविष्णवे नमः ।
कलश स्थापन एवं पूजन-
कलश- मिट्टी, पीतल, ताँबा, चाँदी तथा सोना (उतरोत्तर श्रेष्ठ)
उपचार- पूजन में उपलब्ध सामग्री के अनुसार उपचार का विधान किया जाता है।
वर्तमान समय में तीन प्रकार के उपचार प्रचलन में है-
पंचोपचार- 1 गन्ध(चन्दन) 2 पुष्प 3 धूप 4 दीप तथा 5 नैवेद्य
दशोपचार- 1 पाद्य 2 अर्घ्य 3 आचमन 4 स्नान 5 वस्त्र 6 चन्दन 7 पुष्प 8 धूप 9 दीप 10 नैवेद्य
षोडशोपचार- 1 आवाहन 2 आसन 3 पाद्य 4 अर्घ्य 5 आचमन 6 स्नान 7 वस्त्र 8 यज्ञोपवीत 9 चन्दन 10 पुष्प 11 धूप 12 दीप 13 नैवेद्य 14 ताम्बुल
15 प्रदक्षिणा 16 पुष्पांजलि
दुर्गा पूजन में विहित पुष्पादि-
जितने भी लाल फूल हैं वे सभी भगवती को प्रिय हैं। सामान्य नियम यह है कि भगवान शंकर की पूजा में जो पत्र-पुष्प विहित हैं, वे सभी भगवती को भी प्रिय हैं। विशेष कर स्थान में उपलब्ध फूल-पत्र से ही पूजन करना चाहिए।
निषेध- दुर्गा जी को दूर्वा नहीं चढ़ाना चाहिए, तुलसी का भी निषेध प्राप्त है।
वेदी निर्माण
सर्वप्रथम पूजास्थान में परंपरागत अनुसार अरिपन (अष्टदलयुक्त) देकर वेदी का निर्माण करें।
आकृति प्रमाण-
शास्त्र के अनुसार पूजा स्थान में चतुरस्त्र (चौकर) गंगा मिट्टी से अथवा उपलब्ध नदी के मिट्टी से वेदि का निर्माण दो हाथ/डेढ़ हाथ/ एक हाथ का होना चाहिए।
स्वस्तिवाचन
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः।।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः।
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि।।
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः उमा महेश्वराभ्यां नमः वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः शचीपुरन्दराभ्यां नमः मातृ-पितृचरणकमलेभ्यो नमः इष्टदेवताभ्यो नमः कुल देवताभ्यो नमः ग्रामदेवताभ्यो नमः, वास्तुदेवताभ्यो नमः स्थान देवताभ्यो नमः सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः
कलशस्थापनम्-
संकल्प- दाहिने हाथ में त्रिकुशा (तेकुशा, तिल एवं जल लेकर अधोलिखित संकल्प करेंगे-
ओं अथ आश्विने मासि शुक्ले पक्षे प्रतिपत्तिथौ (अपना गोत्र) गोत्रस्य (अपना नाम) मम सपरिवारस्य उपस्थित शरीराविरोध्ेन नवग्रह जनित सकल-अरिष्ट-झटिति प्रशमन-पूर्वक-दीर्घ-आयुष्ट-बलपुष्टि-नैरूज्य-प्राप्ति सर्वपाप प्रशमनाऽखिलापच्छान्ति पूर्वक धनधान्य सन्तति सुख मनोभिलषित फलप्राप्तिपूर्वक सांग सायुध सवाहन सपरिवार श्री दुर्गा प्रीति कामो शरत्कालीन श्री दुर्गा पूजा सहित अंगभूत कलश स्थापनमहं करिष्ये।
पूजा स्थान में जहाँ कलश स्थापना करनी हो उस स्थान को सर्वप्रथम स्पर्श करते हुए अधोलिखित मन्त्र पढ़ें-
ऊँ भूरसि भूमिरस्यादितिरसि विश्वधाया भुवनस्य धर्त्री।
पृथिवीं यच्छ पृथिवीं दृं ग्गूं ह पृथिवीं मा हिंग्गूं सीः।।
भूमि स्पर्श करने के बाद गाय के गोबर से भूमि पर लेपन किया जाता है जहाँ कलश स्थापन करनी हो। गोमय लेपन के बाद ही धान्य प्रक्षेप किया जाता है।
मन्त्र-
ऊँ मानस्तोके तनये मान आयुषि मानो गोषु मानोऽ अश्वेषु रीरिषः ।
मानो वीरान् रूद्रभामिनो वधीर्हविष्मन्तः सदमित्वा हवामहे।
इस मन्त्र से गोबर का लेपन करें।
अधोलिखित मन्त्र पढ़कर कलशस्थापन भूमि पर सप्तधान्य/धान/गेहूँ/जौ को छिड़कें।
ऊँ धान्यमसि धिनुहि देवान् प्राणाय त्वो दानाय त्वा व्यानाय त्वा।
दीर्घामनु प्रसितिमायुषे धां देवो वः सविता हिण्यपाणिः प्रतिगृभ्णात्वच्छिद्रेन पाणिना चक्षुषे त्वा महीनां पयोऽसि।।
कलश सुसज्जित हो तथा जलपूर्ण कर सुपाड़ी, सिक्का-2, थोड़ी मिट्टी, हल्दी, दूर्वा, रोली छोड़कर पल्लव सहित इस अधोलिखित मन्त्र से कलश स्थापन करें-
ऊँ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते।।
कलशस्थापनम्-
कलश स्थापन- ऊँ आ जिघ्र कलशं महया त्वा विशत्त्विन्दवः पुनरूर्जा निवर्तस्व सा नः सहस्त्रं धुक्ष्वोरूधारा पयस्वती पुनर्मा विशताद्रयिः।।
कशल में जल भरने का मन्त्र-
ऊँ वरूणस्योत्तम्भनमसि वरूणस्य स्कम्भसर्जनीस्थो वरूणस्यऽऋतसदन्यसि वरूणस्य ऋतसदनमसि वरूणस्य ऋतसदनमा सीद।।
ऊँ गंगाद्याः सरितः सर्वाः समुद्राश्च सरांसि च।
सर्वे समुद्रा सरितः तीर्थानि जलदा नदाः।
आयान्तु यजमानस्य दुरितक्षयकारकाः।।
पंचरत्न-
सोना, हीरा, मोती, पद्मराग और नीलम ये पंचरत्न हैं। कलश में इसी पंचरत्न को छोड़ा जाता है। पंचरत्न के अभाव में आज्य(घृत) छोड़ें।
मन्त्र-
ऊँ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्। स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम।
ऊपर लिखित मन्त्र पढ़ते हुए पंचरत्न/घृत छोड़ें।
पंचपल्लव-
बरगद, गूलर, पीपल, आम तथा पाकड़ ये पंचपल्लव हैं। यदि पाँचों उपलब्ध न हो तो केवल आम का पल्लव कलश में रखें।
मन्त्र-
ऊँ अश्वत्थे वो निषदनं पर्णे वो वसतिष्कृता।
गोभाज ऽइत्किलासथ यत्सनवथ पूरूषम्।।
सप्तमृत्तिका- घुड़साल, हाथीसाल, बाँबी, नदियों के संगम, तालाब, राजा के द्वार और गोशाला इन सात स्थानों के मिट्टी को सप्तमृत्तिका कहते हैं। इन सभी के अनुपब्ध होने पर गंगा की मिट्टी से अथवा अपने क्षेत्र में प्रवाहित नदी के मृत्तिका से कार्य करना चाहिए।
अधोलिखित मन्त्र पढ़कर एक चुटकी भर मिट्टी कलश में छोड़ें।
मन्त्र-
स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी।
यच्छा नः शर्म सप्रथाः।
सर्वौषधि-
मुरा, जटामाँसी, वच, कुष्ठ, शिलाजीत, हल्दी और दारूहल्दी, सटी, चम्पक, मुस्ता ये सर्वौषधि कहलाती हैं। उक्त औषधियों के अभाव में घर में स्वच्छ हल्दी हो तो गाँठ वाली हल्दी प्रयोग करें।
मन्त्र-
ऊँ या ओषधीः पूर्वा जाता देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा।
मनै नु बभ्रूणामह ग्गूं शतं धामानि सप्त च।।
इस मन्त्र को पढ़ते हुए सर्वौषधि/हल्दी कलश में छोड़ें।
सुपाड़ी- कलश में सुपाड़ी एक अथवा पाँच की संख्या में अधोलिखित मन्त्र को पढ़कर छोड़ें-
मन्त्र-
ऊँ याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः।
बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मंचन्त्व ग्गूं हसः।।
द्रव्य- (प्रचलित मुद्रा धातु का)- प्रचलित मुद्रा(रूपया) धातु का कलश में अधोलिखित मन्त्र पढ़कर छोडें़-
मन्त्र-
हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः।
अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं पयच्छ में।।
पूर्णपात्र- कलश के ऊपर ढ़कने के लिए एक पात्र(सराई विशेष) जिसमें अक्षत भर कर कलश के ऊपर रखते हैं। अधोलिखित मन्त्र को पढ़ कर इस
पूर्णपात्र को रखें-
मन्त्र-
ऊँ पूर्णा दर्वि परा पत सुपूर्णा पुनरा पत।
वस्नेव विक्रीणावहा इषमूर्ज ग्गूं शतक्रतो।।
नारियल- नारियल(जलदार) लाल कपड़ा में लपेटकर पूर्णपात्र के ऊपर रखें।
मन्त्र-
ऊँ याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः।
बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुंचन्त्व ग्गूं हसः।।
शान्तिकलश प्रतिष्ठा- हाथ में पुष्प अक्षत लेकर अधोलिखित मन्त्र पढ़ें
मन्त्र-
ऊँ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञं ग्गूं समिमं दधातु। विश्वे देवासऽइह मादयन्तामो 3 म्प्रतिष्ठ।।
ऊँ शान्तिकलश इहागच्छ इह तिष्ठ। कहकर कलश के ऊपर अक्षत छोडें़।
पंचोपचार पूजन-
जल- एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय-पुनराचमनीयानि ऊँ शान्तिकलशाय नमः।
चन्दन- इदमनुलेपनम् ऊँ शान्तिकलशाय नमः।
अक्षत- इदमक्षतम् ऊँ शान्तिकलशाय नमः।
पुष्प- एतानि पुष्पाणि ऊँ शान्तिकलशाय नमः।
दूर्वा- एतानि दूर्वादलानि ऊँ शान्तिकलशाय नमः।
बिल्वपत्र- एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ शान्तिकलशाय नमः।
नैवेद्य- एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल यथाभाग नानाविध नैवेद्यानि ऊँ शान्तिकलशाय नमः।
आचमन- इदमाचमनीयम ऊँ शान्तिकलशाय नमः।
पुष्पांजलि- एष पुष्पांजलिः ऊँ शान्तिकलशाय नमः।
प्रार्थना-
हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-
ऊँ शान्ति कुम्भ महाभाग सर्वकामफलप्रद।
पुष्पं गृहाण शुभं यच्छ देवधार नमोऽस्तु ते।।
हाथ में अक्षत लेकर आवाहन करें-
ऊँ विनायकादि-पंचदेवता-नवदुर्गा-नवचण्डिका-नवग्रहादि-दिक्पाल-वाहनास्त्रादि देवता सहित सांग सायुध सवाहन सपरिवार ऊँ भूर्भुवः स्वर्भगवति श्री दुर्गे इहागच्छ इह तिष्ठ तिष्ठ, इह सन्निधेहि, अत्राधिष्ठानं कुरू कुरू, मम सर्वोपचारसहिता पूजा गृहाण गृहान स्वाहा।
इस प्रकार मन्त्र पढ़कर कलश पर अक्षत छोडें।
॥ श्री दुर्गा देव्यै नमः।॥
अथ दुर्गा पूजन विधि-
कलश स्थापना के बाद कलश के ऊपर भगवती दुर्गा का आवाहन पूजन करना चाहिए।
1. आवाहन- हाथ में पुष्प अक्षत लेकर माँ दुर्गा का आवाहन करें-
ओं जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः भगवति दुर्गे इहागच्छ इह तिष्ठ।
कलश के ऊपर हाथ में लिये हुए पुष्प - अक्षत को छोड़ दें।
पुनः हाथ में अरहुल या कोई अन्य लाल फूल लेकर
ओं नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियाताः प्रणता स्म ताम्।
इदम आवाहन पुष्पं सांग - सायुध- सवाहन - सपरिवारायै भगवत्यै श्री दुर्गायै नमः।
पुष्प को कलश के ऊपर छोड़ें।
ओं दुर्गे सर्वजगन्नाथे यावत् पूजावसानकम्।
तावत्त्वं प्रीतिभावेन घटेऽस्मिन् सन्निधा भव ॥
आसन → आसन हेतु पुनः पुष्प हाथ में लेकर इस मन्त्र को पढ़ें-
ओं आसनं भास्वर तुंगं, मांगल्यं सर्वमंगले।
भजस्व जगतां मातः प्रसीद, जगदीश्वरि ॥
अथवा
ओं नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियाताः प्रणता स्म ताम्।
इदम् आसनं सांग - सायुध- सवाहन - सपरिवारायै भगवत्यै श्री दुर्गा देव्यै नमः।
2. पाद्य (पैर धोने हेतु जल) अर्घा में जल लेकर भगवती के चरणों को ध्यान लगाकर पैर धोने हेतु मन्त्र पढें -
ओं गंगादि सलिलाधारं तीर्थं मन्त्राभिमन्त्रितम् ।
दूरयात्राश्रमहरं पाद्यं तत्प्रति गृहयताम।।
अथवा
ओं नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियाताः प्रणता स्म ताम्।
इदम् पाद्यं सांग - सायुध- सवाहन - सपरिवारायै भगवत्यै श्री दुर्गा देव्यै नमः।
3. अर्घ्य (सम्मान में अर्घ्य ) अर्घा में जल सुगन्धित पुष्प, अक्षत, लौंग, इलायची, चन्दन लेकर अंजलि में अर्घा लेकर भगवति का ध्यान करते हुये अर्घ दें‘-
ओं तिलतण्डुल संयुक्तं कुशपुष्प समन्वितम्।
सुगन्धं फल संयुक्तम् अ र्घयं देवि गृहाण मे।
अथवा
ओं नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियाताः प्रणता स्म ताम्।
एषोऽर्घ्य सांग - सायुध- सवाहन - सपरिवारायै भगवत्यै श्री दुर्गा देव्यै नमः।
4. आचमन (आचमनी पात्र में जल लेकर)
ओं स्नानादिक वि धायापि यतः शुद्धिवाप्यते ।
इदमाचमनीयं हि दुर्गे देवि प्रतिगृह्यताम् ।।
अथवा
ओं नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियाताः प्रणता स्म ताम्।
इदमाचमनीयं सांग - सायुध- सवाहन - सपरिवारायै भगवत्यै श्री दुर्गा देव्यै नमः।
आचमनी का जल सम्मुख रखे पात्र में छोड़ दें।
5. स्नान- भगवती को स्नान कराने हेतु जलपात्र या अर्घा में जल लेकर निम्नलिखित श्लोक पढ़ें-
ओं गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
अथवा
ओं नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियाताः प्रणता स्म ताम्।
इदं स्नानीयं सांग - सायुध- सवाहन - सपरिवारायै भगवत्यै श्री दुर्गा देव्यै नमः।
पंचामृत उपलब्ध होने पर- पंचामृत लेकर इस श्लोक को पढ़ें-
पंचामृतं मयानीतं पयोद च घृतं मधु।
शर्करा च समायुक्तं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।
अथवा
ओं नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियाताः प्रणता स्म ताम्।
एष पंचामृतः सांग - सायुध- सवाहन - सपरिवारायै भगवत्यै श्री दुर्गा देव्यै नमः।
6. वस्त्र- रक्त-पीत वस्त्र अथवा साड़ी लेकर भगवती को वस्त्र निवेदन करें-
ओं सूक्ष्मतन्तुसमाकीर्ण नानावर्णविचित्रितम्।
वस्त्रं गृहाण मे देवि प्रीत्यर्थं तव निर्मितम्।।
अथवा
ओं नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियाताः प्रणता स्म ताम्।
इदं रक्त/पीत वस्त्रं सांग - सायुध- सवाहन - सपरिवारायै भगवत्यै श्री दुर्गा देव्यै नमः।
7. उपवस्त्र- भगवती को उपवस्त्र में लाल चुनरी/लाल सालुक या कोई नवीन वस्त्र जगदम्बा को अर्पण करें-
ओं नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियाताः प्रणता स्म ताम्।
इदं उपवस्त्रं सांग - सायुध- सवाहन - सपरिवारायै भगवत्यै श्री दुर्गा देव्यै नमः।
8. रक्त चन्दन- अनामिका अंगुली अथवा पुष्प में चन्दन लगाकर निम्नलिखित श्लोक पढ़ें-
ओं रक्तानुलेपनं देवि स्वयं देव्या प्रकाशितम्।
तद् गृहाण महादेवि शुभं देहि नमोऽस्तुते।।
अथवा
ओं नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियाताः प्रणता स्म ताम्।
इदं रक्तचन्दनं सांग - सायुध- सवाहन - सपरिवारायै भगवत्यै श्री दुर्गा देव्यै नमः।
सिन्दूर- अपने दाहिने हाथ बैठी धर्मपत्नी के द्वारा माँ भगवति को सिन्दूर अर्पण करना चाहिये।
देहि सौभाग्य मारोग्यं देहि मे परमं सुखं।
रूपं देहि जयं देहि यथो देहि द्विषो जहि।
अथवा
सर्वमंगलमांग ल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बिके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।।
अथवा
ओं नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियाताः प्रणता स्म ताम्।
इदं सिन्दूरा भरणं सांग - सायुध- सवाहन - सपरिवारायै भगवत्यै श्री दुर्गा देव्यै नमः।
9. अक्षत- हाथ में अक्षत लेकर (अक्षत में रक्त चन्दन/सिन्दूर लगाकर) भगवती को अर्पण करें
ओं अक्षतं धान्यजं देवि ब्रह्मणा निर्मितं पुरा।
प्राणदं सर्वभूतानां गृहाण वरदे शुभे।।
अथवा
ओं नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियाताः प्रणता स्म ताम्।
इदं अक्षतं सांग - सायुध- सवाहन - सपरिवारायै भगवत्यै श्री दुर्गा देव्यै नमः।
10. पुष्प- हाथ में एकाधिक रक्त पुष्प अथवा सुगन्धित उपलब्ध विहित पुष्प लेकर श्लोक पढ़े-
चलत् परिमला मोद मत्तालिगण संकुलम्।
आनन्द नन्दनोद्भूतं दुर्गायै कुसमं नमः।।
अथवा
ओं नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियाताः प्रणता स्म ताम्।
एतानि पुष्पाणि सांग - सायुध- सवाहन - सपरिवारायै भगवत्यै श्री दुर्गा देव्यै नमः।
बिल्वपत्र- हाथ में बिल्वपत्र लेकर निम्नलिखित श्लोक पढ़ें-
ओं अमृतो द्भवश्रीवृक्षं शंकरस्य सदा प्रियम्।
पवित्रं ते प्रयच्छाम बिल्वपत्रं सुरेश्वरि।।
अथवा
ओं नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियाताः प्रणता स्म ताम्।
इदं बिल्वपत्रम् सांग - सायुध- सवाहन - सपरिवारायै भगवत्यै श्री दुर्गा देव्यै नमः।
11. धूप- भगवति को सुगन्धित धूप (अगरब त्ती/गुग्गुल का धूप/धूमन) दिखावें-
ओं गुग्गुलं घृतसंयुक्तं नाना भक्ष्यैश्च संयुतम।
दशांग गृह्यतां धूपं देर्गे देवि नमोऽस्तुते।।
अथवा
ओं नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियाताः प्रणता स्म ताम्।
एष धूपः ओं सांग - सायुध- सवाहन - सपरिवारायै भगवत्यै श्री दुर्गा देव्यै नमः।
12. दीप- घृत दीप लेकर भगवति को दिखावें-
ओं मार्तण्डमण्डलान्तस्थ चन्द्रबिम्बाग्नितेजसाम्।
निधानं देवि दीपोऽयं निर्मित स्तव भक्तितः
अथवा
ओं नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियाताः प्रणता स्म ताम्।
एष दीपः ओं सांग - सायुध- सवाहन - सपरिवारायै भगवत्यै श्री दुर्गा देव्यै नमः।
इत्र- पुष्प में इत्र लगाकर भगवति को अर्पण करें-
ओं परमानन्दसौरभ्यं परिपूर्णदिगम्बरम्।
गृहाण सौरभं दिव्यं कृपया जगदम्बिके।।
वा
ओं नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियाताः प्रणता स्म ताम्।
इदं सुगन्धितद्रव्यम् ओं सांग - सायुध- सवाहन - सपरिवारायै भगवत्यै श्री दुर्गा देव्यै नमः।
13. नैवेद्य- नैवेद्य को भगवती के सम्मुख अथवा दाहिने भाग में रखें। अर्घा में जल लेकर नैवेद्य निवेदन करें-
ओं दिव्यान्नरससंयुक्तं नानाभक्ष्यैस्तु संयुतम्।
चोष्यपेयसमायुक्तम् अन्नं देवि गृहाण में।।
अथवा
ओं नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियाताः प्रणता स्म ताम्।
एतानि नानाविधनैवेद्यानि ओं सांग - सायुध- सवाहन - सपरिवारायै भगवत्यै श्री दुर्गा देव्यै नमः।
14. ताम्बूल-एक पात्र में ताम्बूल(पान-सुपाड़ी-लौंग-इलायची) अर्पण करें-
पूगीफल समायुक्तं संचूर्णम्मुखमण्डलम् ।
ग्रहाणं देवि ताम्बूलं कर्पूरेण सुवासितम् ।।
अथवा
ओं नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियाताः प्रणता स्म ताम्।
इदं ताम्बूलम् ओं सांग - सायुध- सवाहन - सपरिवारायै भगवत्यै श्री दुर्गा देव्यै नमः।
आरती- पात्र में कपूर लेकर जगदम्बा की आरती करें-
ओं कर्पूरवर्तिसंयुक्तं वह्निना दीपितंच यत्।
नीराजनं च देवेशि गृह्यतां जगदम्बिके।।
वा
ज्वाला कराल मत्युग्र्रमशेषा सुरसूदनम्।
त्रिशूलं पातु नो देवि दुर्गेदेविनमोऽस्तुते।।
अर्घा में जल लेकर- इदं नीराजनं ओं सांग - सायुध- सवाहन - सपरिवारायै भगवत्यै श्री दुर्गा देव्यै नमः।
15. प्रदक्षिणा- ’‘एका चण्ड्या’’ वचनानुसार भगवती की एक प्रदक्षिणा करनी चाहिए।
ओं यानिकानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि वै।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिण पदे-पदे।।
इस प्रकार भगवती की एकबार परिक्रमा कर लें अथवा स्थान पर ही एकबार घूम जाये।
16. पुष्पांजलिः- हाथ में पुष्पों को लेकर निम्नांकित मन्त्र को पढ़ें-
ऊँ दुर्गे दुर्गे महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणि।
त्वं काली कमला ब्राह्मी त्वं जया विजया शिवा।।
त्वं लक्ष्मीर्विष्णुलोकेषु कैलाशो पार्वती तथा।
सरस्वती ब्राह्मलोके चेन्द्राणी शक्रपूजिता।।
वाराही नारसिंही च कौमारी वैष्णवी तथा।
त्वमापः सर्वलोकेषु ज्योतिर्ज्योतिः स्वरूपिणी।।
योगमाया त्वमेवाऽसि वायुरूपा नभः स्थिता।
सर्वगन्धवहा पृथ्वी नानारूपा सनातनी।
विश्वरूपे च विश्वेशे विश्वशक्तिसमन्विते।
प्रसीद परमानन्दे दुर्गे देवि नमोऽस्तुते।।
नानापुष्प समाकीर्ण नानासौरभसंयुतम्।
पुष्पांजलिंच विश्वेसि गृहाण भक्तवत्सले।।
एष पुष्पांजलिः ओं सांग - सायुध- सवाहन - सपरिवारायै भगवत्यै श्री दुर्गा देव्यै नमः।
अंजलि में संचित पुष्प को अर्पित करें।
क्षमा प्रार्थना- हाथ जोड़कर भगवती से क्षमा प्रार्थना करें-
ऊँ शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे
सर्वस्यर्ति हरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते।
ओं प्रार्थयामि महा माये यत्किंचित् स्खलितं मम।
क्षम्यतां तज्जगन्मातः दुर्गे देवि नमोऽस्तुते।।
प्रार्थना के बाद प्रणाम करें।
इन्द्रादिदशदिक्पालपूजाः-
1. अक्षतान्यादायः – ऊँ भूभुर्वः स्वः श्री इन्द्रादिदशदिक्पालाः इहागच्छत इह तिष्ठत ।
दाहिने हाथ में अक्षत लेकर यह मंत्र पढेगें - ऊँ भूभुर्वः स्वः श्री इन्द्रादिदशदिक्पालाः इहागच्छत इह तिष्ठत । इसे केले पत्ते पर ऊपर से बाएं तरफ से सातवें स्थान पर रखेंगे।
2. जल - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नाननीय पुनराचमनीयानि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।
अर्घा में जल लेकर यह मंत्र पढेगें - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नाननीय पुनराचमनीयानि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।
3. चन्दन - इदमनुलेपनम् ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।
दाहिने हाथ से फूल में चन्दन लगाकर ये मंत्र पढेगें - इदमनुलेपनम् ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।
4. अक्षत इदमक्षतम् ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।
दाहिने हाथ में अक्षत लेकर ये मंत्र पढेगें - इदमक्षतम् ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।
5. पुष्प - इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।
दोनों हाथों को जोड़ते हुए फूल/फूलों को लेकर इन्द्रादिदशदिक्पाल का ध्यान करते हुए ये मंत्र पढेगें - इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।
6. बिल्वपत्र – इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।
एक बेलपत्र/बेलपत्रों को लेकर ये मंत्र पढेगें - इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।
7. तुलसीपत्र - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।
एक तुलसीपत्र/तुलसीपत्रों को लेकर ये मंत्र पढेगें - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।
8. दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं / एतानि दूर्वादलानि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।
एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं दूर्वादलं / एतानि दूर्वादलानि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।
9. जल -एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।
अर्घा में जल लेकर ये मंत्र पढेगें - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।
10. जल – इदमाचमनीयम् ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।
अर्घा में जल को लेकर ये मंत्र पढेगें - इदमाचमनीयम् ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।
11. पुष्प - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।
फूल हाथ में लेकर लक्ष्मी का ध्यान करते हुए ये मंत्र पढेगें - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।
नवग्रहपूजाः-
1. अक्षतान्यादायः- ऊँ भूर्भुवः स्वः साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहाः इहागच्छत इह तिष्ठत ।
दाहिने हाथ में अक्षत लेकर यह मंत्र पढेगें - ऊँ भूर्भुवः स्वः साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहाः इहागच्छत इह तिष्ठत । इसे केले पत्ते पर ऊपर से बाएं तरफ से आठवें स्थान पर रखेंगे।
2. जल - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नाननीय पुनराचमनीयानि ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।
अर्घा में जल लेकर यह मंत्र पढेगें - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नाननीय पुनराचमनीयानि ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।
3. चन्दन - इदमनुलेपनम् ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।
दाहिने हाथ से फूल में चन्दन लगाकर ये मंत्र पढेगें - इदमनुलेपनम् ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।
4. अक्षत -इदमक्षतम् ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।
दाहिने हाथ में अक्षत लेकर ये मंत्र पढेगें - इदमक्षतम् ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।
5. पुष्प - इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।
दोनों हाथों को जोड़ते हुए फूल/फूलों को लेकर साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहों का ध्यान करते हुए ये मंत्र पढेगें - इदं पुष्पं/ एतानि पुष्पाणि ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।
6. बिल्वपत्र – इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।
एक बेलपत्र/बेलपत्रों को लेकर ये मंत्र पढेगें - इदं बिल्वपत्रं/ एतानि बिल्वपत्राणि ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।
7. तुलसीपत्र - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।
एक तुलसीपत्र/तुलसीपत्रों को लेकर ये मंत्र पढेगें - इदं तुलसीपत्रं / एतानि तुलसीपत्राणि ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।
8. दूर्वा ( दूबि) - इदं दूर्वादलं / एतानि दूर्वादलानि ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।
एक दूर्वा/ अनेक दूर्वा को लेकर ये मंत्र पढेंगे - इदं दूर्वादलं / एतानि दूर्वादलानि ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।
9. जल - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।
अर्घा में जल लेकर ये मंत्र पढेगें - एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।
10. जल – इदमाचमनीयम् ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।
अर्घा में जल को लेकर ये मंत्र पढेगें - इदमाचमनीयम् ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।
11. पुष्प - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।
फूल हाथ में लेकर साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहों का ध्यान करते हुए ये मंत्र पढेगें - एष पुष्पाञ्जलिः ऊँ साधिदैवत-सप्रत्यधिदैवत-विनायकादिपञ्चकसहित नवग्रहेभ्यो नमः।
इस प्रकार माँ दुर्गा की नित्य पूजा-अर्चना विधान समाप्त हुआ।
अब अपने सुविधानुसार पाठ करें।
अथ हवनविधिः-
वर्तमान समय में पूजन करने वाले यजमान देश-काल-परिस्थिति के अनुसार जो शास्त्र विहित हो श्रद्धापूर्वक सथासम्भव हवन कर्म करें।
मुहूर्त- महाष्टमी अथवा महानवमी को अपने कुलपरम्परा के अनुसार हवनकर्म करना चाहिए।
विशेष- सामान्य रूप से पूजन करने वाले पूजक नवमी को हवन कर दशमी को बिसर्जन करें।
पूजास्थल में एक हाथ का चैकर माप लेकर मिट्टी का वेदी बनावें जिसे स्थण्डिल कहते हैं। उसपर गोबर से लेपन कर पवित्र कर लें। समिधा (लकड़ी) को पास में रखें।
हवन करने वाले होता स्थण्डिल या कुण्ड को सर्वप्रथम संस्कार करते है जिससे अग्नि सुसंस्कृत होकर कल्याणकारी होता है। इस संस्कार को पंचभूसंस्कार कहते हैं।
1 कुश अथवा दूर्वा से स्थण्डिल को बुहारना
2 गोबर व जल से लेपन करना
3 तीन रेखा खींचना (नीचे से ऊपर)
4 इन तीन रेखाओं से मिट्टी निकालकर ईशान कोण में फेंक देना।
5 पुनः जल से सींचना
इस प्रकार उपरोक्त विधि से पंचभू नामक संस्कार करना चाहिए।
अब अग्नि प्रज्वलित कर गन्ध-अक्षत-पुष्प से अग्नि का पूजन कर अधोलिखित मन्त्र पढ़ें।
ओं जगद्धात्रि महामाये सर्वशत्रुक्षयंकरि।
होमद्रव्यं गृहाणाऽम्ब वह्मयास्येन महेश्वरि ।।
इस श्लोक को पढ़कर भगवती को प्रणाम करें।
अग्नि प्रज्वलित हो जाय तब अग्नि के बाँएं भाग में एक जलपात्र जिसे प्रोक्षणी पात्र कहते हैं उसे रख लें।
होमद्रव्य- पायस (खीर) तिल अथवा घृत से हवन करें
हवन किस मन्त्रों से करना चाहिये इसके विषय में शास्त्र में वर्णित है-
नवाक्षरेण वा हुत्वा नमो देव्या इतीति च अर्थात् मूल मन्त्र ओम् ऐं हीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। इस मन्त्र से या
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्।।
इस श्लोक से हवन करें। पूजन क्रम में भी प्रत्येक वस्तु के निवेदन में इसी श्लोक का प्रयोग मन्त्रवत् किया गया है।
अग्नि में आहुति की विधि-
ओं भूः स्वाहा इदं भूः
ओं भुवः स्वाहा इदं भुवः
ओं स्वः स्वाहा इदं स्वः
इन तीनों व्याहृतियों से घृत की आहुति दें।
यदि नवग्रह समिधा(लकड़ी) उपलब्ध हो तो उसे घृत में भिंगोकर अग्नि में प्रक्षेप करें।
पुनः क्रमशः आहुति इस प्रकार से दें-
1 ओं गणपत्ये स्वाहा
2 ओं गौर्यै स्वाहा
3 ओं सूर्याय स्वाहा
4 ओं चन्द्राय स्वाहा
5 ओं भौमाय स्वाहा
6 ओं बुधाय स्वाहा
7 ओं बृहस्पतये स्वाहा
8 ओं शुक्राय स्वाहा
9 ओं शनैश्चराय स्वाहा
10 ओं राहवे स्वाहा
11 ओं केतवे स्वाहा
भगवती दुर्गा की आहुति-
पायस (खीर) से अथवा घृत से-
1 ओं दुर्गे दुर्गे रक्षिणि रक्षिणि स्वाहा
2 ओं हीं दक्षयज्ञ विनाशिन्यै महाघोरायै योगिनीकोटि परिवृतायै हीं भद्रकाल्यै नमः स्वाहा
3 ओं जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते ॥
4 ‘‘ओं ऐं हीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे स्वाहा’’ इस मन्त्र से 108 बार आहुति प्रदान करें
विशेष- हवन के लिए दुर्गा सप्तशती के चतुर्थ अध्याय के प्रत्येक श्लोक संख्या में स्वाहा बोलकर पायस (खीर) की आहुति दें।
इस अध्याय का "शूलेन पाहिनो" से लेकर "रस्मानरक्ष सर्वतः" चार श्लोक (श्लोक संख्या (24 से 27 तक) हाथ जोड़ें, आहुति न दें। "ओं दुर्गा देव्यै नमः स्वाहा" मन्त्र से चार आहुति दें।
डॉ आनंद दत्त झा
सहायक प्राचार्य वेद
कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय
दरभंगा