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तत्र कृतनित्यक्रियो व्रती मृन्मयीं कृष्णादिप्रतिमां प्रकल्प्य- सर्वप्रथम नित्यक्रिया करने के बाद पवित्रिकरण के बाद सूर्यादि पंचदेवता विष्णु पूजा के बाद संकल्प करें।
दाहिने हाथ के अनामिका अँगुली में कुश निर्मित पवित्री धारण करेगें,तथा दाहिने हाथ में तेकुशा(कुश) तथा जल को लेकर अपने शरीर को शिक्त करने से पूर्व इस मंत्र को पढ़ेंगे, अनन्तर शरीर को शिक्त करेंगे । ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा । यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।। ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।।
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तत्र कृतनित्यक्रियो व्रती मृन्मयीं कृष्णादिप्रतिमां प्रकल्प्य- सर्वप्रथम नित्यक्रिया करने के बाद पवित्रिकरण के बाद सूर्यादि पंचदेवता विष्णु पूजा के बाद संकल्प करें।
सर्वप्रथम स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ तथा धुले हुए वस्त्र धारण कर मन, वचन तथा कर्म की शुद्धि सहित पवित्र आसन के ऊपर पूर्व दिशा की ओर मुँह करके बैठें तथा शिखा (चोटी) बन्धन कर, नवीन यज्ञोपवीत धारण करेंगे । इसके बाद इष्टदेवी की मूर्ति, चित्र अथवा उसके प्रतीक
आप सभी भक्तो को यह बताते हुआ प्रसन्नता हो रही है कि आप इस प्रक्रिया से स्वयं भगवान सत्यनारायण की पूजा वैदिक विधि से कर सकते है हवन आप चाहे तो करे अन्यथा नहीं करे।
आरती- ऊँ जय जगदीश हरे आरती- श्रीअम्बाजीकी आरती शिवजी की आरती श्री सरस्वती जी की आरती श्री लक्ष्मी जी की आरती श्री गणेशजी की आरती श्री दुर्गाजी की
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